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सीतलषष्ठी व्रत: इतिहास, कथा, लाभ, नियम और महत्वपूर्ण तिथियां जानिए

सीतलषष्ठी व्रत: इतिहास, कथा, लाभ, नियम और महत्वपूर्ण तिथियां जानिए

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सीतल षष्ठी का इतिहास, महत्व और ज्योतिषीय रहस्य: जानिए इसका ब्रह्मांडीय अर्थ और लाभ

सीतल षष्ठी हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य विवाह का उत्सव माना जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पर्व को खासकर ओडिशा और भारत के अन्य हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। आइए इस लेख में जानें — सीतल षष्ठी का इतिहास, इसकी कथा, व्रत के नियम, लाभ, और इसका कॉस्मिक (ब्रह्मांडीय) महत्व

सीतल षष्ठी का इतिहास और पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार, सीतल षष्ठी का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की स्मृति में मनाया जाता है। कथा के अनुसार, माता सती के आत्मदाह के बाद, भगवान शिव ने अनेक वर्षों तक तपस्या की। बाद में, सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया। पार्वती की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को विवाह स्वीकार किया। यही दिन "सीतल षष्ठी" कहलाया — जहां ‘सीतल’ का अर्थ है ‘शीतलता’ या ‘शांति’, और ‘षष्ठी’ तिथि का प्रतीक है।

इस दिन शिव-पार्वती विवाह का आयोजन अत्यंत भव्य रूप से किया जाता है, विशेषकर ओडिशा के संबलपुर में, जहां इसे सामाजिक और सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर बारात, मंडप, भजन और विवाह संस्कार का आयोजन किया जाता है, जो देवताओं के इस पवित्र मिलन की याद दिलाता है।

सीतल षष्ठी का ज्योतिषीय और ब्रह्मांडीय महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सीतल षष्ठी सूर्य और चंद्रमा की स्थिति से गहराई से जुड़ी हुई है। यह तिथि तब आती है जब सूर्य मिथुन राशिचंद्रमा तुला राशिब्रह्मांडीय संतुलन और ऊर्जा का समन्वय होता है। यह दिन शिव (पुरुष ऊर्जा) और शक्ति (स्त्री ऊर्जा) के मिलन का प्रतीक है, जो सृष्टि के निर्माण और संतुलन का संकेत देता है। इसलिए इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, सामंजस्य और आध्यात्मिक स्थिरता आती है।

सीतल षष्ठी व्रत करने के लाभ

  • यह व्रत विवाह संबंधी समस्याओं को दूर करता है और दांपत्य जीवन में प्रेम व स्थिरता लाता है।
  • शिव-पार्वती की कृपा से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
  • यह व्रत ग्रह दोषों को शांत करता है और विशेषकर शुक्र व चंद्र ग्रह के दुष्प्रभावों को कम करता है।
  • व्रत करने से मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं, जिससे व्यक्ति की आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है।
  • यह पर्व नारी-पुरुष संतुलन और पारिवारिक सामंजस्य को बढ़ावा देता है।

व्रत और पूजा के नियम (Do’s & Don’ts)

क्या करें:

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
  • ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘पार्वती मंत्र’ का जाप करें।
  • फलों, पुष्पों और पंचामृत से शिव-पार्वती का पूजन करें।
  • व्रत पूरा होने के बाद दान-पुण्य करें और गरीबों को भोजन कराएं।

क्या न करें:

  • व्रत के दिन मांस, मद्य या प्याज-लहसुन का सेवन न करें।
  • झगड़ा, क्रोध या नकारात्मक बातें करने से बचें।
  • अशुद्ध वस्त्र या स्थान पर पूजा न करें।

सीतल षष्ठी 2025 की तिथि

वर्ष 2025 में सीतल षष्ठी का पर्व 4 जून (बुधवार) को मनाया जाएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल से प्रारंभ होकर रात्रि तक रहेगा। इस दिन शिव-पार्वती विवाह का प्रतीकात्मक उत्सव विभिन्न मंदिरों और घरों में मनाया जाएगा।

ज्योतिषीय दृष्टि से सीतल षष्ठी का प्रभाव

इस दिन ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवाह बहुत प्रबल होता है। जो लोग इस दिन व्रत और ध्यान करते हैं, उनके जीवन में ग्रह दोष, विशेषकर मंगल और शुक्र दोष का शमन होता है। जिनका वैवाहिक जीवन अस्थिर है या विवाह में देरी हो रही है, उन्हें इस दिन पूजा अवश्य करनी चाहिए। यह दिन आत्मिक शांति और वैवाहिक सामंजस्य प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  • प्रश्न: सीतल षष्ठी का क्या अर्थ है?
    उत्तर: यह भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की स्मृति में मनाया जाने वाला पर्व है, जो वैवाहिक सामंजस्य और शांति का प्रतीक है।
  • प्रश्न: इस दिन व्रत करने का क्या लाभ होता है?
    उत्तर: इस व्रत से वैवाहिक जीवन में स्थिरता, मानसिक शांति और ग्रह दोषों का निवारण होता है।
  • प्रश्न: सीतल षष्ठी किस मास में आती है?
    उत्तर: यह व्रत ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
  • प्रश्न: क्या अविवाहित महिलाएँ यह व्रत कर सकती हैं?
    उत्तर: हाँ, यह व्रत अविवाहित महिलाएँ भी अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु कर सकती हैं।

निष्कर्ष

सीतल षष्ठी न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह ऊर्जा संतुलन और ग्रह समरसता का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि जब पुरुष और स्त्री ऊर्जा (शिव-शक्ति) एकजुट होती हैं, तब सृष्टि में शांति, संतुलन और समृद्धि आती है। अतः इस दिन व्रत, पूजा और ध्यान करने से न केवल आत्मिक संतोष प्राप्त होता है बल्कि ग्रह दोषों से मुक्ति और वैवाहिक जीवन में आनंद भी आता है। यदि आप अपने जीवन में स्थिरता और शुभता लाना चाहते हैं, तो इस पावन दिन Duastro के फ्री कुंडली विश्लेषण से अपनी जन्म कुंडली का अध्ययन अवश्य करें और ज्योतिषीय मार्गदर्शन प्राप्त करें।

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